राग शुद्ध कल्याण परिचय
परिचय - इसे कल्याण थाट से उत्पन्न माना गया है । इसके आरोह में म , नि तथा अवरोह में म वर्ज्य माना जाता है , अतः इसकी जाति ओडव – षाडव है । निषाद स्वर अल्प है । वादी स्वर – गन्धार और सम्वादी स्वर – धैवत है । इसका गायन – समय रात्रि का प्रथम प्रहर है । इसके सभी स्वर शुद्ध हैं ।
आरोह – सा रे ग प ध सां ।
अवरोह – सां नि ध प, मे ग, रे सा ।
पकड़ – ग रे सा, नि ध प, सा, ग रे प रे सा ।
विशेषता
( 1 ) शुद्ध कल्याण की उत्पत्ति भूपाली और कल्याण के मेल से हुई है । आरोह भूपाली और अवरोह कल्याण का है । अवरोह में में अति अल्प है । इसलिये अवरोह की जाति में में की गणना , नहीं की गई है । इसमें भूपाली और कल्याण का मिश्रण होने के कारण कुछ विद्वान इसे भूपकल्याण भी कहते हैं ।
( 2 ) प रे की कण युक्त संगति इसकी प्रमुख विशेषता है । पीछे हम बता चुके हैं कि छायानट में प रे की संगति का विशेष महत्व है । जहाँ तक केवल प रे की संगति का प्रश्न है , राग छायानट और शुद्ध कल्याण में अन्तर यह है कि छायानट में प से रे को आते समय मींड जैसे- प रे और शुद्ध कल्याण में कण का प्रयोग करते हैं जैसे ग ऽ परे ऽ सा ।
( 3 ) यह गंभीर प्रकृति का राग है । इसकी चलन मन्द्र , मध्य तथा तार तीनों सप्तकों में अच्छी प्रकार से होती है ।
( 4 ) इसमें निषाद स्वर अल्प है । कुछ गायक इसे पूर्णतया वर्ण्य कर देते हैं , कुछ केवल मींड में और कुछ इसका स्पष्ट प्रयोग करते हैं । नि का प्रयोग अधिक हो जाने से कल्याण राग की छाया आने की आशंका रहती है । इसलिये जो गायक शुद्ध कल्याण में निषाद का स्पष्ट प्रयोग करते हैं , वे इसे मंद्र की तुलना में मध्य सप्तक में कम प्रयोग करते हैं । नि पूर्णतया वयं करने से जैत कल्याण की छाया आ सकती है ।
( 5 ) पीछे यह बताया जा चुका है कि इसमें मध्यम स्वर बिल्कुल वर्ण्य है , किन्तु अवरोह में प से ग तक मींड लेते समय तीव्र मध्यम का आभास दिखाया जाता है । यह स्वर – समुदाय कल्याण थाट का रागवाचक अंग है । इस प्रकार तीव्र मध्यम का अल्प प्रयोग और वह भी मींड के साथ होता है , अतः आरोह – अवरोह तथा राग की जाति में इसकी गणना नहीं की जा सकती है ।
न्यास के स्वर– सा , रे , ग और प ।
समप्रकृति राग– भूपाली
शुद्ध कल्याण- ग ऽ प रे ऽ सा , नि ध नि ध प । भूपाली- सा रे ग प ग , रे ग ऽ रे सा रे ध सा ।
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