राग दरबारी कानड़ा सम्पूर्ण परिचय - जो गुरु कृपा करे
राग दरबारी कानड़ा:-
दरबारी कानड़ा राग , आसावरी तहत से उत्पन्न हुआ है। वादी स्वर ऋषभ व सम्वादी स्वर पंचम को मन गया है। इस राग की जाती सम्पूर्ण - षाडव मानी गयी है इसे वक्र सम्पूर्ण जाति का राग भी कहा जाता है। इस राग को मध्यरात्रि में गाया बजाया जाता हैं। इस राग की प्रकृति गंभीर है। आरोह में गांधार दुर्लभ है, इस राग में निषाद और पंचम की संगति बहुत सूंदर दिखाई देती है।
- जाति - थाट - आसावरी
- सम्पूर्ण - षाडव
- वादी - ऋषभ (रे)
- संवादी - पंचम (प)
- गायन समय - मध्यरात्रि
आरोह - .नि सा रे ग रे सा , म प ध नि सां
अवरोह - सां ध नि प म प ग म रे सा
पकड़ - ग रे रे , सा ध नि सा रे सा
अवरोह - सां ध नि प म प ग म रे सा
पकड़ - ग रे रे , सा ध नि सा रे सा
दरबारी कानड़ा (स्थायी )
रे ¯ सा सा | सा रे ¯ रे | ग ¯ ¯ म | रे ¯ सा ¯ |
जो s गु रु | कृ पा s क | रे s s s | s s s s |
0 | 3 | x | 2
म ¯ म म | प ¯ प प | म मप प नि | ग गम रे सा |
को s टि क | पा s प का | ट तs प ल | छी नs म s |
0 | 3 | x | 2
रे ¯ सा सा | सा रे ¯ रे | ग ¯ ¯ म | रे ¯ सा ¯ |
जो s गु रु | कृ पा s क | रे s s s | s s s s |
0 | 3 | x | 2
दरबारी कानड़ा (अंतरा)
म म प ¯ | नि प नि ¯ | सां सां सां ¯ | नि सां सां ¯
गु रु की s | म हि मा s | ह रि सों s | भा s रि s
0 | 3 | x | 2
नि सां सां सां | रें ¯ सां सां | नि नि सां रें | ध नि प ¯ |
वे s द पु | रा s न न | स ब हिं वि | चा s री s
0 | 3 | x | 2
सां ¯ सां ¯ | म ¯ प नि | ग म रे सा | रे रे सा ¯ |
ब्र s म्हा s | व्या s स र | टे s प ल | छि न में s |
0 | 3 | x | 2
रे ¯ सा सा | सा रे ¯ रे | ग ¯ ¯ म | रे ¯ सा ¯ |
जो s गु रु | कृ पा s क | रे s s s | s s s s |
0 | 3 | x | 2
विशेषताएँ -
- ग और ध अन्दोलित होते है।
- ग म रे सा तथा ध नि प कानड़ा का अंग है।
- इसकी चलन मद्र मध्य में ज्यादा है।
- ग और ध वक्र है।
- गंभीर प्रकृति का राग है
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