राग वृन्दावनी सारंग सम्पूर्ण परिचय वंदिस सहित

राग वृन्दावनी सारंग सम्पूर्ण परिचय और वंदिस 

raag vrindavani saarang parichay aur vandish


राग वृन्दावनी सारंग परिचय

वृन्दावनी सारंग राग का जन्म काफ़ी थाट से माना गया है। इसमें गंधार ( ग ) और धैवत (ध ) स्वर वर्ज्य है। अतः इसकी जाति औडव - औडव है। वादी स्वर ऋषभ तथा सम्वादी स्वर पंचम मन जाता है। इसका गायन समय मध्यान्ह काल है। इसमें दोनों रिषभ (रे ) तथा शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते है। 


 आरोह - नि, सा, रे, म, प, नि, सां ।  
अवरोह सां, निप, म, रे, सा ।     
पकड़ - रे म प नि प,म रे,( ि.न)सा।



नोट - ( ि.न) = नि मन्द्र सप्तक

विशेषतायें 

१) इसके अतिरिक्त सारंग के कई प्रकार है जैसे - शुद्ध सारंग, मियाँ की सारंग, बड़हंस सारंग, सामंत सारंग, मध्यमाद सारंग आदि। 

२) इसके आरोह में शुद्ध और अवरोह में कोमल नि का प्रयोग किया जाता है। उपयुक्त आरोह - अवरोह यह बात स्पष्ट। है 

३) वृंदावनी सारंग के प्राचीन ध्रुपदों में कही कही अल्प शुद्ध धैवत मिलता है, किन्तु वर्तमान  समय में धैवत नहीं प्रयोग होता।

४) इसमें बड़ा ख्याल छोटा ख्याल तराना सब गया जाता है। 

५) साधारण  बोल चाल की भाषा में सारंग का अर्थ वृन्दावनी ही लगाया जाता है

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