संगीत में ताल का महत्त्व
ताल – यह ऐसी रचना है जो संगीत में समय को मापने के लिए प्रयोग की जाती है | इसकी लम्बाई आवश्यकता अनुसार छोटी या बड़ी हो सकती है |
स्वर और लय संगीत रूपी भवन के दो आधार स्तम्भ हैं | स्वर से राग और लय से ताल |
लय नापने के लिए मात्रा की रचना की गई |
संगीत गायन, वादन, और नृत्य की त्रिवेणी हैं | इन तीनो में ताल का बड़ा महत्व हैं गायक वादक को हमेशा ताल का ध्यान रखना पड़ता हैं, वाह नई - नई कल्पना करता हैं किन्तु ताल से बाहर नहीं जा सकता जितनी सुन्दरता से वाह ताल से मिलता हैं उतना ही उच्च कोटि का गायक कहलाता हैं |
अच्छे गायक वा वादक में ताल की कुशलता होना आवश्यक हैं |
अलाप के अतिरिक्त संगीत की सभी चीजे तालबद्ध होती हैं, इसीलिए अलाप शुरू में किया जाता हैं और अलाप के ख़त्म होते ही ताल शुरू होता हैं |
गीत के प्रकारो के आधार पर विभिन्न प्रकार के तालो की रचना हुई |
ख्याल के लिए तीनताल, झपताल, झूमर, तिलवाड़ा रूपक आदि
ध्रुपद के लिए चरताल शुलताल आदि
इन तालो की बोल गीत के प्रकृति अनुसार चुनी जाति हैं |
इसीलिए जब गायन के साथ तवला अथवा पखावज बजाया जाता हैं तो अधिक आनंद आता हैं |
गायन वादन में स्वर और लाय के माध्यम से और नृत्य के अंग प्रदर्शन और लय के माध्यम से भावों को प्रकट किया जाता है इतना ही नहीं तबला के बोलों के टुकड़ों को भी नृत्य द्वारा प्रदर्शित किया जाता है |
उचित ताल के प्रयोग से ही संगीत में रस श्रृष्टि होती हैं और तभी आनंद प्राप्त होता हैं | इसीलिए साधारण जनता को लोकगीत तथा चित्रपट गीत अधिक पसंद आते हैं |
गीत के प्रकारो के आधार पर विभिन्न प्रकार के तालो की रचना हुई |
ख्याल के लिए तीनताल, झपताल, झूमर, तिलवाड़ा रूपक आदि
ध्रुपद के लिए चरताल शुलताल आदि
इन तालो की बोल गीत के प्रकृति अनुसार चुनी जाति हैं |
इसीलिए जब गायन के साथ तवला अथवा पखावज बजाया जाता हैं तो अधिक आनंद आता हैं |
गायन वादन में स्वर और लाय के माध्यम से और नृत्य के अंग प्रदर्शन और लय के माध्यम से भावों को प्रकट किया जाता है इतना ही नहीं तबला के बोलों के टुकड़ों को भी नृत्य द्वारा प्रदर्शित किया जाता है |
उचित ताल के प्रयोग से ही संगीत में रस श्रृष्टि होती हैं और तभी आनंद प्राप्त होता हैं | इसीलिए साधारण जनता को लोकगीत तथा चित्रपट गीत अधिक पसंद आते हैं |
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