संगीत के इतिहास को हम मुख्यतः तीन भागों में बांट सकते हैं
1. प्राचीन संगीत
2. मध्यकाल
3. आधुनिक काल
1. प्राचीन कॉल ---
इस काल का प्रारंभ आदि काल से माना जाता है, इस काल में चारों वेदों की रचना हुई वेदों में सामवेद प्रारंभ से अंतिम तक संगीतमय हैं, सामवेद के मंत्रों का पाठ अभी भी संगीत में होता है पहले शाम गायन के 3 स्वरों में किया जाता था
1.स्वरित्त
2.उदत्त
3.अनुदत्त
धीरे-धीरे स्वरों की संख्या तीन से चार चार से पांच व पांच से सात हुई,
" महाभारत में 7 वर्ष वालों और गंधर्व ग्राम का उल्लेख मिलता है "
रामायण में विभिन्न प्रकार के वाद्यों तथा संगीत की उपमा ओं का उल्लेख मिलता है
"रावण स्वयं संगीत का बड़ा विद्वान था उसने रावण स्त्रोत नामक वाद्य का आविष्कार किया"
भरत कृत नाट्य शास्त्र
"यह संगीत के महत्वपूर्ण पुस्तक है जिसकी रचना काल के विषय में अनेक मत हैं किंतु अधिकांश विद्वानों द्वारा पांचवी शताब्दी माना गया है इसके छठ में अध्याय में संगीत संबंधी विषयों पर प्रकाश डाला गया है इससे यह सिद्ध होता है कि इस समय भी संगीत का बहुत प्रचार था"
नारद लिखित नारदीय शिक्षा
"इस ग्रंथ के रचनाकार में विद्या विद्वानों के अनेक मत है अधिकांश विद्वान ऐसे ग्रंथ को दसवीं से बारहवीं शताब्दी का मानते हैं"
*इन सभी ग्रंथों से यह ज्ञात होता है कि उस समय संगीत का अच्छा प्रचार था*
मध्य काल
"इस काल की अवधि छठवीं शताब्दी से उन तेरहवीं शताब्दी तक मानी गई है"
उस समय के ग्रंथों को देखने से स्पष्ट है कि जिस प्रकार आजकल रात गान प्रचलित था उसी प्रकार प्रबंधक में उस काल में प्रचलित था
उसी प्रकार प्रबंध गायन उस काल में प्रचलित था|
"मध्य काल को प्रबंध काल के नाम से भी जाना जाता हैं "
नौवीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी तक संगीत की उन्नति अच्छी हुई,
उस समय रियासतों में अच्छे कलाकार (संगीतकार) मौजूद थे, जिन्हें शासक द्वारा अच्छी तनख्वाह मिलती थी
* यह कल संगीत का स्वर्ण युग कहा जाता था*
*मध्य काल के महत्वपूर्ण ग्रंथ---
* संगीत मकरंद
* गीत गोविंद
* संगीत रत्नाकर इत्यादि
*संगीत मकरंद --
इसकी रचना 12वीं शताब्दी में हुई थी जयदेव ने इसकी रचना की थी जयदेव केबल कभी नहीं अपितु एक अच्छे गायक भी थे इसमें प्रबंधों और गीतों का संग्रह भी है किंतु लिपिक ज्ञान ना होने से गायन संभव नहीं है
*संगीत रत्नाकर --
संगीत रत्नाकर 13वीं शताब्दी में सारंग देव द्वारा लिखी गई है यह ग्रंथ ना केवल उत्तरी संगीत में अपितु दक्षिण संगीत में महत्वपूर्ण समझा जाता है
"11वीं शताब्दी में मुगलों का आक्रमण शुरू हो गया लगभग 12 वीं शताब्दी में भारत में मुसलमानों का राज हो गया "
मुसलमानों का प्रभाव भारतीय संगीत में पड़ा जिससे उत्तरी एवं दक्षिणी भारतीय संगीत धीरे-धीरे पृथक हो गये |
कुछ मुसलमानों को संगीत से बड़ा प्रेम था उनके समय संगीत की अच्छी उन्नति हुई,
" अकबर के शासन काल में संगीत की बहुत उन्नति हुई अकबर स्वयं संगीत का प्रेमी था,
अकबरी के अनुसार अकबर के राज दरबार में 36 संगीतज्ञ थे जिसमें तानसेन सब के मुखिया थे,
तानसेन ने कई रागों की रचना की जिसमें राग दरबारी कानडा, मियां का सारंग, मियां मल्हार इत्यादि |
|आज भी तानसेन के बनाए द्रुपद मिलते हैं|
अकबर के समय ग्वालियर के राजा मानसिंह तोमर गोस्वामी तुलसीदास मीराबाई आज भक्त कवियों द्वारा संगीत का अच्छा प्रचार हुआ,
आधुनिक युग या आधुनिक काल
"भारतवर्ष में फ्रांसीसी पुर्तगाली डच अंग्रेज आए किंतु अंग्रेजों ने भारत में अधिपत्य जमा लिया * उनका मुख्य उद्देश्य राज्य करना और पैसे कमाना था"
उनसे संगीत की अपेक्षा करना व्यर्थ होगा
उस समय संगीत कुछ रियासतों में चल रहा था, किंतु दूसरी ओर संगीतकारो की भी कमी हो गई,
संगीतकार केवल अपने संबंधियों को बड़ी मुश्किल से संगीत सीखा पाते थे |
"धीरे-धीरे संगीत कुलटा स्त्रियों की हाथ लगा और संगीत केवल आमोद प्रमोद का कारण बन गया लोक संगीत से नफरत करने लगे कुछ अच्छे समाज में संगीत का नाम लेना पाप था"
1600 ई0 के बाद अर्थात बीसवीं शताब्दी के पहले संगीत का प्रचार शुरू हुआ इसका मुख्य उद्देश्य स्वर्गीय पंडित विष्णु दिगंबर एवं पंडित विष्णु नारायण भारतखंडे को जाता है भारतखंडे जी ने संगीत का शास्त्र पक्ष लिया पंडित दिगंबर जी ने क्रियात्मक पक्ष लिया इस प्रकार दोनों ने अपना पक्ष मजबूत किया
आकाशवाणी और सिनेमा द्वार भी संगीत का काफी प्रचार हुआ स्वतंत्र के बाद संगीत के प्रचार में भारत सरकार का महत्वपूर्ण योगदान रहा,
आज संगीत अपने शिखर पर हैं.
हर व्यक्ति को संगीत सुनना पसंद हैं,
2 टिप्पणियाँ
Thanks for sharing
जवाब देंहटाएंWhat's the condition of classical music in Mahabharata
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