संगीत सम्राट तानसेन जी का जीवन परिचय

तानसेन का जीवन परिचय

संगीत सम्राट तानसेन जी का जीवन परिचय 





संगीत सम्राट तानसेन जी का जीवन परिचय -

दीजिये भारत में कौन ऐसा व्यक्ति होगा जिसने तानसेन का नाम ना सुना हो. 
तानसेन का असली नाम तन्ना मिश्र था. (कुछ विद्वान रामतनु पांडे भी कहते हैं ) उनके पिता का नाम मकरंद पांडे था.  कुछ लोग पांडे जी को मिश्र भी कहते हैं. 

तानसेन के जन्मदिन के विषय में अनेक विद्वान के अनेक मत हैं.  अधिकंश विद्वानो कर मतानुसार उनका जन्म  1532 ई.  में ग्वालियर से 8मील दूर बेहट ग्राम में हुआ था. 

उनके जन्म के विषय में एक मत हैं कि बहुत दिनों तक मकरंद पांडे संतानहीन थे.  मुहम्मद गौस नामक फ़क़ीर के आशीर्वाद स्वरुप उन्हें एक पुत्र उत्पन्न हुआ. 

प्रारम्भ से ही तन्ना दुसरो कि नकल करने कि अपूर्व क्षमता थी. बालक तन्ना पशु- पक्षियों तथा जानवरों की विभिन्न बोलिए की सच्ची नकल करते थे और हिंसक पशु की बोली से लोगों को डराया करते थे.

इसी भी स्वामी हरिदास से उनकी भेंट हो गई.

= मिलने की भी एक मनोरंजक घटना है,  एक समय स्वामी जी अपनी मंडली के साथ पास के जंगल से गुजर रहे थे नटखट तन्ना एक पेड़ की आड़ में शेर की बोली से उन्हें डराने लगा अतः साधु मंडली बहुत घबराई थोड़ी देर बाद तानसेन हंसते हुये सबके सामने प्रकट हुऐ. 

 स्वामी हरिदास जी उसके प्राकृतिक प्रतिभा से अत्यधिक प्रभावित हुए और उसके माता-पिता से तानसेन को संगीत सिखाने के लिए माँग लिया और वृंदावन ले गए. 

 इस प्रकार तानसेन स्वामी है देश के साथ रहने लगे वह 10 वर्षों तक उनसे संगीत की शिक्षा प्राप्त की.  अपने पिता कि अश्वस्तता सुनकर तानसेन ग्वालियर चले गये.  कुछ समय बाद उनके पिता का देहांत हो गया. 



पिता कि आज्ञा के अनुसार तानसेन मोहम्मद गौस के पास रहने लगे. 
वहां वो कभी कभी संगीत  सुनने के लिए मंदिर चले जाया करते थे.  वहां कि विधवा रानी मृगनैनी के दासी हुसैनी से उनका विवाह हो गया. 

उनके उनके चार पुत्र और 1 पुत्री थी. 
1. सूरतसेन 
2. शरतसेन 
3. तरंगसेन 
4. विलास खाँ 
और पुत्री का नाम सरस्वती था. 

जब तानसेन अच्छे गायक हो गए तो रीवा नरेश रामचंद्र ने उन्हें राज्य गायक नियुक्त कर लिया महाराज रामचंद्र और अकबर में घनिष्ठ मित्रता थी महाराज रामचंद्र अकबर को प्रसन्न करने के लिए गायक तानसेन को उन्हें उपहार स्वरूप भेंट कर दिया.
अकबर स्वयं संगीत का प्रेमी था. वह उन्हें पाकर अत्यधिक प्रसन्न हुआ और अपने नवरत्नों में शामिल कर धीरे धीरे अकबर तानसेन को बहुत मानने लगा. फलस्वरुप दरबार के अन्य गायक उनसे जलने लगे.

उन लोगों ने तानसेन के विनाश की एक युक्ति निकाली.
 सभी गायकों ने अकबर बादशाह से प्रार्थना की तानसेन से दीपक राग सुना जाए और देखा जाए कि दीपक राग में कितना प्रभाव देखा जाये. 
तानसेन के अतिरिक्त कोई दूसरा गायक दीपक राग को गा नहीं सकेगा.
यह बादशाह के दिमाग में जम गई उसने तानसेन को दीपक राग गाने को बाध्य किया.
 तानसेन अकबर को बहुत समझाया कि दीपक राग गाने से परिणाम बहुत बुरा होगा किंतु बादशाह ने एक ना सुनी 

 अतः तानसेन को दीपक राग गाना पड़ा 
गाते ही गर्मी बढ़ने लगी और चारों ओर से मानो अग्नि कि लपटे आ रही हो. 
 श्रोतागण तो मारे गर्मी के भाग निकले तानसेन का शरीर प्रचंड गर्मी से जलने लगा उसकी गर्मी केवल मेंघ राग से समाप्त हो सकती थी.
कहा जाता है कि तानसेन की पुत्री सरस्वती ने मेघ राग गाकर अपने पिता की जीवन रक्षा की.



 तानसेन ने अनेक रागों की रचना की जैसे दरबारी कान्हड़ा,  मियां की सारंग,  मियां की तोड़ी, मियां मल्हार,  आदि. 


सन 1585 ई.  में दिल्ली में तानसेन कि मृत्यु हुई. 
और ग्वालियर मैं गुलाम गौस की कब्र के पास उनकी समाधि बनाई गई.




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