स्वरों का विस्तार में अध्यन | स्वर की परिभाषा और प्रकार |

हम पिछले post में स्वरों की परिभाषा के बारे में पड़ चुके है, 

हम आज स्वरों का विस्तार पूर्वक जानेंगे, स्वर के बिना संगीत की कल्पना करना भी असम्भव हैं|





स्वर 

          मुख्य 12 श्रुतियो को स्वर कहते हैं|
इन स्वरों  के नाम हैं  -  षडज, ऋषभ, गंधार, मध्यम, पंचम, धैवत, और निषाद |

सरलता के लिए इन्हे सा, रे, ग, म, प, ध, नि,  कहा जाता हैं|



 स्वरों के प्रकार -  

मुख्यतः स्वर दो प्रकार के होते हैं, 
1. शुद्ध स्वर 
2. विकृत स्वर 

1. शुद्ध स्वर - 

" बारह स्वरों में से मुख्य 7 स्वरों को शुद्ध स्वर कहते हैं"

दूसरे शब्दों में कहे तो जो स्वर अपने निश्चित स्थान में रहते हैं उन्हें हम शुद्ध स्वर कहते हैं| 
स्वरों के इन निश्चित स्थानों को संगीतकारो द्वारा निश्चित किया जा चूका हैं, 

सा रे ग म प ध और नि | 



2. विकृत स्वर - 

" जो स्वर अपने निश्चित स्थान से थोड़ा उतर व चढ़ जाते है विकृत स्वर कहलाते हैं "

दूसरे शब्दो में - पाँच स्वर ऐसे होते हैं जो शुद्ध के साथ - साथ विकृत या कोमल भी होते हैं |

< विकृत स्वर के भी दो प्रकार होते है >

•) कोमल और तीव्र 

1) कोमल - जब किसी स्वर को उसकी निश्चित स्थान से नीचे गाया जाता हैं, तो उसे कोमल स्वर कहते हैं |


2) तीव्र - जब किसी स्वर को अपनी निश्चित स्थान से ऊपर गाया जाता हैं, वो तीव्र स्वर कहलाता हैं |





दूसरे दृष्टिकोण से - 


"कुछ संगीतकार इसको दूसरी दृष्टिकोण से विभाजित करते हैं"

1) चल स्वर 
2) अचल स्वर 


1) चल स्वर - 


"जो स्वर शुद्ध के साथ साथ विकृत (कोमल or तीव्र ) भी होते हैं,  जैसे - रे ग म ध और नि इन्हे चल स्वर कहते हैं "|


2) अचल स्वर -


"वे स्वर जो सदैव शुद्ध होते हैं, उन्हें अचल स्वर कहते हैं"|
जैसे "सा" और "प" ये दो स्वर अचल स्वर होते हैं, ये अपने स्थान में अडिग रहते हैं, 







संगीत से सम्बंधित अगर आपका कोई सवाल या सुझाव हैं तो कृपया comment box में बताये 



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